बेनी हनहा
बेनी
हनहा
वेणु
प्रसाद तिवारी खेतिहर परिवार से सम्बन्ध रखते थे।परिवार में 50 बीघा जमीन की काश्तकारी
थी।उनके परिवार को इलाके के काफी सम्पन्न लोगों में माना जाता था।वेणुजी तीन
भाइयों व दो बहनों में सबसे बड़े थे।बड़े होने का सम्मान उन्हें पूर्णरूप से मिलता
था।वह भी अपने सभी भाई-बहनों का बड़ा ही ध्यान रखते थे।वह बड़प्पन की
जिम्मेदारियों से वाकिफ थे।जिम्मेदारियों को निभाने के साथ उनके केवल दो ही शौक
थे।वह शुद्ध पौष्टिक भोजन का भरपूर सेवन व शरीर की नियमित वर्जिस कसरत करते
थे।जिससे उनका शरीर निखर कर रह गया था।सात फुटा कद मोटी जांघें मजबूत कद-काठी वाला
शरीर उनकी शान ही निराली थी।उनकी गिनती इलाके के जाने-माने पहलवानों में होती
थी।कुश्ती के अखाड़े में उनका कोई शानी नहीं था।ना जाने कितनी बार वह कुश्ती का
दंगल जीतकर वापस घर लौटे थे।घर-परिवार की जिम्मेदारियों का निर्वाह करते-करते
उन्होंने कभी अपने बारे में सोचा ही नहीं था।खेती किसानी के तमाम झंझटों, जिनका
कोई पारावार ही नहीं था।उन सबका वह बराबर निर्वहन करते रहे।छोटे भाइयों ने बड़े
भाई के योगदान को देखते हुए इन सब झंझटों से मुक्ति पा ली थी।उम्र बीतने के साथ
सभी भाई-बहनों की उन्होंने शादियाँ खूब धूम-धाम से कीं।कहीं किसी प्रकार की
कोर-कसर न रह जाये इस सबका बड़ा ही ध्यान रखा कि जिससे घर-परिवार को किसी मामले
में नीचा न देखना पड़ जाये।यह सब करते कराते उम्र बीत गयी।अपने भविष्य व घर-बार के
लिये सोचने का उन्हें वक्त ही नहीं मिला।सभी छोटे भाई-बहनों के घर बस चुके थे।बड़े
भाई के लिये समय रहते छोटे भाई-बहनों ने सोचा ही नहीं था और अब सोचने से कोई फायदा
नहीं था।क्योंकि शादी करने जैसी उनकी उम्र कब की निकल चुकी थी।अब तो छोटे भाई भी
अपने घर-परिवार में मस्त थे।लेकिन इन सबके बावजूद बड़े भाई को सम्मान देने व
खाने-पीने की व्यवस्था में कहीं कोई कोताही नहीं बरती जाती थी।उन्हें पूर्ववत
मान-मर्यादा सम्मान मिलता रहा।अब जब भाइयों ने अपने अपने घर-परिवार की जिम्मेदारी
अपने ऊपर ले ली।तो वेणुजी भी अलमस्त जीवन जीने लगे।पहलवानी के समय से ही उनके दो
साथी थे।एक हाथ में सात फुटा लाठी और दूसरे हाथ में पीतल का वजनी लोटा रहता
था।लाठी व लोटे के अपने अलग-अलग उपयोग थे।लाठी हाथ में रहने से अपना एक अलग जोश व
ताकत सुरक्षा का एहसास झलकता था।वैसे तो मजबूत कद-काठी के साथ वह गाँव के सम्मानित
जनों में पहले से ही थे।किसी की उनकी तरफ आँख उठा कर देखने की हिम्मत नहीं होती
थी।सामने पड़ने पर लोग सम्मान स्वरूप प्रणाम,राम जोहार कह कर अपना रास्ता पकड़
लेते थे।फिर भी लाठी साथ में रखने का अपना एक अलग ही दबदबा व शौर्य झलकता था।खेतों
में आवारा जानवरों को भगाने में भी इसका प्रयोग होता था।गाँव-गली के कुत्ते-बिल्ली
व दुष्ट व्यक्ति भी लाठी के दुष्प्रभाव को पहचानते थे।लोटे के भी अनेकों प्रयोग
थे।लोटा भी ऐसा-वैसा नहीं था।उसकी तुलना एक छोटे-मोटे घड़े से की जा सकती थी।नहर,ट्यूबवेल
आदि में स्नान करते समय इस्तेमाल किया जाता था।सुबह-शाम दैनिक दिनचर्या के दौरान
इसका बेहतर उपयोग समझा जा सकता था।वेणुजी का जीवन ब्रह्मचर्य के तेज से प्रकाशित
था।गाँव घर में जिस किसी के दरवाजे में खड़े होकर आवाज लगाते ‘अरे बहू कुछ मठ्ठा-दही है कि
नहीं।'अन्दर से आवाज आती ‘हाँ दादा'।वेणुजी बहू के सामने अपना लोटा
रख देते।बहू दही-मठ्ठे की हांडी लोटे पर पलट देती।उनका लोटा अक्षय पात्र जैसा था
जो भरने का नाम ही नहीं लेता था।बहुएं मारे संकोच के अपनी खाली हांडी लेकर वापस
चली जातीं।वेणुजी वहीं दरवाजे पर खड़े-खड़े लोटे का दही-मठ्ठा एक ही सांस में गटक
जाते।गन्ने की पेराई के वक्त जिस कोल्हू में वह पहुँच जायें लोग उन्हें बड़ी ही
आव-भगत के साथ बैठाते।एक-दो लोटा गन्ने का रस तो ये ऐसे ही पी जाते थे।वह अढ़ाई
सेर गुड़ तो बैठे-बैठे एक बार में ही उदरस्थ कर लेते थे।एक बार की बात है ट्यूबवेल
का पानी नाली में बह रहा था।पास में ही खेतों की सिंचाई हो रही थी।वेणुजी ने बगल
के खेत से कौरी भर मूली उखाड़ लीं।कौरी की तुलना एक छोटे-मोटे गठ्ठर से की जा सकती
है।मूलियों के गठ्ठर को नाली किनारे रखा।नाली के साफ पानी में एक-एक मूली को धोते
और डंठल छोड़कर पूरी मूली व पत्ते चबा डालते।ऐसा कर एक-एक मूली को धोते-चबाते
गये।किसी ने देखकर कहा कि अरे दादा मूली खाने से मुँह से बदबू निकलती है।जवाब में
उन्होंने उसे बहुत डाँटा और कहा मूली के सेवन से पेट बहुत साफ रहता है।मूलियों का
पूरा गठ्ठर उदरस्थ कर उन्होंने एक गहरी लम्बी सांस छोड़ी और बोले चलो आज का
पनपियाव हो गया।देहाती भाषा में नाश्ता, ब्रेक फास्ट को पनपियाव कहा
जाता है।देखने वाले ने अपना माथा पीट लिया।एक गठ्ठर मूली उदरस्थ करने पर जब नाश्ता
होता है तो दोपहर-शाम के भोजन के क्या हाल रहते होंगे।वेणुजी एक बार में दो कौड़ी
यानी चालीस पनेथी मोटी रोटियों का भोजन करते थे।साथ में एक पतीली दाल व इतना ही
चावल खाते थे।जैसा कि ऊपर बताया गया कि अच्छा व ज्यादा भोजन ही उनके एक मात्र शौक
थे।जिससे उनके छोटे भाइयों की बहुएं अच्छी तरह से वाकिफ थीं।संस्कारी बहुएं अपने
दादा को बड़े ही सम्मान से भरपूर भोजन कराने में अपने आपको कृत-कृत्य मानती थी।नये
जमाने के बच्चों को यह सब देख कर अजूबा होता था।उन्हें यह सब एक दैत्य की खुराक
समझ में आती थी।
एक बार
का किस्सा है लाँक(गेहूँ की फसल) से लदी बैलगाड़ी कच्चे रास्ते में कीचड़ भरे
गढ्ढे में फँस गयी थी।बैलों के बहुत जोर लगाने के बावजूद अपने स्थान से टस से मस
नहीं हो रही थी।गाड़ीवान बहुत ही परेशान हालत में था।उसे कोई उपाय नहीं नजर आ रहा
था।उसी समय वेणुजी उस रास्ते से गुजर रहे थे।उन्होंने बिना देर लगाये अपना लोटा व
लाठी एक तरफ रखकर कीचड़ में घुस गये।उन्होंने गाड़ी के बीचो बीच अपने कंधे का जोर
लगा कर गाड़ी को हल्के से उठा दिया।साथ ही साथ गाड़ीवान को बैल हाँकने का इशारा
किया।अगले ही क्षण गाड़ी गढ्ढे से बाहर आ गयी।जबर्दस्त ढंग से फँसी गाड़ी को एक
झटके में कीचड़ से बाहर कर देने की वेणुजी की ताकत को देखकर गाड़ीवान दंग रह
गया।गाड़ीवान वेणुजी को ढेरों आशीर्वाद व धन्यवाद देकर आगे बढ़ गया।समय चक्र अपनी
गति से आगे बढ़ता चला गया।छोटे भाई भी अब नाती-पोते वाले हो गये थे।वेणुजी का भइया-दादा
वाला सम्बोधन अब बाबा में परिवर्तित हो चुका था।गाँव के बच्चों ने तो इनका नाम भी
बिगाड़कर रख दिया था।वेणु से बदलकर इनका नाम बेनी हो गया था। मजबूत कद-काठी वाले
होने के कारण उसमें एक हनहा विशेषण और जोड़ दिया था।जिससे उनका नाम वेणुजी से
बदलकर बेनी हनहा पड़ गया था।अब वह जहाँ भी जाते उनके नये नाम बेनी हनहा की हाँक
लगने लग जाती।गाँव गली चौपाल में अक्सर उनके नाम की चर्चायें हुआ करती थीं।ऐसे ही
एक दिन चौपाल सजी हुई थी।गाँव के भद्रजनों के साथ दूसरे गाँव का एक नयी उम्र का
पहलवान चौपाल की शोभा बढ़ा रहा था।उसका नाम असलम था।चर्चा का एक ही केंद्र बिन्दु
था बेनी हनहा की पहलवानी के पुराने किस्से जिन्हें लोग नमक-मिर्च लगा कर बयान कर
रहे थे।बेनी हनहा का दंगल फतह करना व नये-नये दांव पेंचों से कुश्ती जीतना।चौपाल
में लोग उनके बारे में बढ़-चढ़कर अपनी बातें पेश करने में मस्त थे।नयी उम्र का
पहलवान बड़े ध्यान से बेनी हनहा की पहलवानी के किस्से सुन रहा था।यह सब सुनकर असलम
बेनी हनहा से मिलने व उनसे दो-दो हाथ करने को उतावला हो गया।उसने गाँव के सरपंच से
बेनी हनहा को चैपाल में बुलाने की गुजारिश की।बेनी हनहा को ससम्मान चौपाल में बुला
कर बैठाया गया।तमाम चर्चाओं के साथ असलम पहलवान ने अपनी बात रखी।उसने कहा कि दादा
आप तो पुरनियाँ पहलवान हैं कुश्ती के तमाम दाँव गुर पेंचों से वाकिफ हैं।कुछ दाँव-पेंच
हमें भी सिखा दीजिये आपका बड़ा भला होगा।चौपाल के अन्य लोगों ने हाँ में हाँ
मिलाई।गाँव के सरपंच की ओर से प्रस्ताव आया कि आगे आने वाले नागपंचमी के दंगल में
बेनी हनहा के साथ असलम पहलवान के दो-दो हाथ हो जायें।इसी बहाने असलम पहलवान को
दाँव पेंचों से वाकिफ होने का मौका मिल जायेगा।साथ ही दंगल के दर्शकों का नउवाँ व
पुरनियाँ पहलवानों की कुश्ती देखने का आनन्द भी मिल सकेगा।बेनी हनहा यह सब सुनकर
हतप्रभ रह गये।उन्होंने हाथ जोड़कर बड़ी ही विनम्रता कहा कि मेरी अब उम्र बीत गयी
है कुश्ती-दंगल यह सब बीते दिनों की बातें हैं।अब तो ठीक से शरीर ही नहीं सँभल
पाता है।कुश्ती दंगल तो बहुत दूर की कौड़ी है।लेकिन किसी ने उनकी बातों को तवज्जो
ही नहीं दी।सरपंच ने कहा अरे खाने पीने खुराक की चिन्ता मत कीजिये।रोज एक पाव घी
की व्यवस्था हमारे यहाँ से हो जायेगी।आप तो केवल वर्जिश व तैयारी पर ध्यान
केंद्रित कीजिये।असलम ने बड़ी ही विनम्रता से उनसे शागिर्दी की गुजारिश करी।इस
सबके बीच बेनी की बात को कोई सुनने के लिये ही तैयार नहीं था।सबने एक स्वर में
अगले दंगल में इनकी कुश्ती तय कर डाली।बेनी हनहा पुराने दिनों की याद कर फिर से
दंड-बैठक व कसरत करने लगे थे।गाँव वालों ने उनके खाने-पीने खुराक का विशेष इन्तजाम
कर दिया था।बेनी सरपंच का दिया हुआ देशी घी रोज पीने लगे।ज्यों-ज्यों दंगल का दिन
नजदीक आता जा रहा था बेनी हनहा के पुरनियाँ शरीर में मसें भीगने लगी थीं।शरीर
पुष्ट व मजबूत नजर आने लगा था।ऐसा लगता था जैसे पुराने दरख्त में नई कोंपलें फूट
पड़ी हों।बेनी शंकित व असमंजस की स्थिति में रह कर दंगल की तारीख का इन्तजार कर
रहे थे।उन्हें लगता था कि उम्र के इस पड़ाव में उनसे कोई ऊँच-नीच न हो जाये जिससे
जग-हँसाई हो।उन्हें अपनी जीत-हार की उतनी फिक्र नहीं थी जितनी की वर्षों से संचित
की गयी घर-परिवार कुल गाँव की मर्यादा की थी।इधर गाँव व पड़ोसी गाँवों के लोगों को
नउवाँ व पुरनियाँ पहलवानों के बीच होने वाले अभूतपूर्व कुश्ती के मुकाबले का बेसब्री
से इन्तजार था।आखिरकार दंगल का वह दिन भी आ गया।उन्हें नयी बंडी,लंगोट के साथ एक लकालक
सफेद गोटेदार चमकीली धोती पहनने को दी गयी।अपने गाँव के हुजूम का नेतृत्व जैसा
करते हुए बेनी कुश्ती के दंगल में जा पहुँचे।रास्ते भर बेनी हनहा के जयकारे लगाये
जाते रहे।उधर असलम पहलवान भी अपने दल-बल के साथ दंगल में जा पहुँचा।अन्त में वह
घड़ी भी आ पहुँची जब नउवाँ पहलवान असलम व पुरनियाँ पहलवान बेनी हनहा अखाड़े में
अपने-अपने दलों के जयकारे के साथ उतर पड़े।अखाड़े की भुरभुरी मिट्टी के साथ कोने
में एक महुआ का पेड़ था।जिसके तने को सजा कर बेदी का रूप दिया गया था।बेदी में
फूलों के साथ एक माला भी चढ़ाई गयी थी।परम्परानुसार कुश्ती शुरू होने के पहले इसी
तने रूपी बेदी को प्रणाम कर उससे जीत का आशीर्वाद लिया जाता था।माहौल में काफी
गहमागहमी थी।दोनों दलों के लोग अपने-अपने पहलवानों की हौसला अफजायी कर रहे थे।इतने
बड़े हुजूम को व्यवस्थित करने के लिये पर्याप्त पुलिस बल की भी व्यवस्था की गयी
थी।बेनी ने अखाड़े में उतर कर उसकी मिट्टी को माथे में लगाया व बेदी को प्रणाम
किया।उसके पश्चात दोनों हाथ जोड़कर यह कहते हुए पूरे अखाड़े का चक्कर लगाया कि
भाइयों मैं उम्रदराज जर्जर शरीर वाला व्यक्ति हूँ।मेरी कुश्ती लड़ने की बिल्कुल ही
इच्छा नहीं है।ज्यादा उम्र हो जाने के कारण मेरा शरीर ठीक से अब सँभलता नहीं
है।कहीं कोई बना-बिगड़ी वाली बात हो गयी तो सब हमें ही दोषी ठहरायेंगे।असलम पहलवान
के दल से आवाज लगी पुरनियाँ पहलवान डर गया है।इसी बहाने कुश्ती से भाग जाना चाहता
है।इधर बेनी के दल से आवाज आयी दादा आप किसी प्रकार की चिन्ता मत करो ।कुछ
बनने-बिगड़ने पर हम सब सँभाल लेंगे।आखिरकार मजबूरीवश उन्हें मुकाबले के लिये असलम
के सामने आना ही पड़ा।दोनों दलों के लोगों ने अपने-अपने नउवाँ व पुरनियाँ पहलवान
की जीत का जोरदार जयकारा लगाया।बेनी हनहा व असलम दोनों ही पहलवान अखाड़े में उतर
गये।आमने-सामने आने पर आपस में हाथ मिलाने की रस्म निभायी जा रही थी।इसी समय पलक
झपकते दर्शकों को एक अलग ही नजारा देखने को मिला। पुरनियाँ पहलवान ने नउवाँ पहलवान
को दोनों हाथों से ऊपर उठा लिया था।काँपते शरीर व हाथों से अखाड़े का एक चक्कर
लगाया।इस दौरान बेनी का शरीर असलम को संभाल नहीं सका और महुए की बेदी के ऊपर धड़ाम
की आवाज के साथ छूट कर गिर पड़ा।पेड़ के तने से टकरा कर असलम की एक जोरदार चीख
निकली इसी के साथ उसका दम निकल गया।असलम के दल की ओर से जोरदार आवाज आयी पुरनियाँ
पहलवान ने नउवाँ पहलवान का कतल कर दिया।मारो-मारो, पकड़ो-पकड़ो की जोरदार हंकारे
के साथ उसके दल वाले अखाड़े की तरफ बढ़े।इस बीच पहले से मुस्तैद पुलिस ने अखाड़े
का नियन्त्रण कर लिया था।पुलिस इंस्पेक्टर ने अपनी रिवाल्वर निकालकर भीड़ की तरफ
तानकर जोरदार आवाज में चिल्लाया। किसी ने एक कदम भी आगे बढ़ाया तो मैं गोली मार
दूँगा। पुरनियाँ पहलवान ने पहले ही कुश्ती न लड़ने के लिये अनुनय-विनय की थी जिसे
किसी ने नहीं सुना।बेनी की इसमें कोई गल्ती नहीं है।सभी लोग वापस जाओ।इधर बेनी के
दल वालों ने उन्हें हाथों-हाथ उठा लिया।उनकी जोरदार जयकार हो रही थी।इधर असलम के
दल में मातम छा गया था।उन सबने वहाँ से चुपचाप खिसक लेने में ही अपनी भलाई
जानी।इधर काफी अरसे बाद एक बार फिर बेनी हनहा लोगों के दिलों में छा गये थे।
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